धीरे - धीरे कुछ खो रहा है,
इक अनजाना सा बदलाव हो रहा है |
थोड़ा हम, थोड़ा लोग बदल रहे है,
जीवन की राह में कुछ इस तरह बढ़ रहे है |
थोड़ा हम, थोड़ा लोग बदल रहे है,
जीवन की राह में कुछ इस तरह बढ़ रहे है |
कभी तराज़ू ऊपर, कभी नीचे हो रहा है,
इक अनजाना सा बदलाव हो रहा है |
समय के साथ मौसम भी बदल रहे है,
पक्षियों के बदले आज इंसान कैद में दिख रहे है |
हर कोई अपना मुखड़ा छुपाये फिर रहा है,
ज़िंदा रहने का डर सबमे दिख रहा है |
पक्षियों के बदले आज इंसान कैद में दिख रहे है |
हर कोई अपना मुखड़ा छुपाये फिर रहा है,
ज़िंदा रहने का डर सबमे दिख रहा है |
जीवन की रफ़्तार थोड़ी रुकी रुकी सी लगी,
दो वक्त की रोटी के लिए कुछ आंखें झुकी झुकी सी लगी |
कुछ आँखों में लाचारी, कुछ में अभिमान नज़र आया,
इक महामारी ने दुनिया को इंसान और खुदा का फर्क समझाया |
न पैसा काम आया, न रुतबा काम आया,
खुदा की तरफ फिर से इंसान मुड़ता नज़र आया |
दौड़ती हुई ज़िन्दगी इक पल में रुक गई,
यह सबको समय ने पाठ पढ़ाया |
जरुरी क्या है ? जीवन में ?
यह फिर से सोचने और खुद को जांचने का समय है आया |
यह फिर से सोचने और खुद को जांचने का समय है आया |
By: J.K
ज़िन्दगी का दौर (zindagi ka daur)|Dear Diary
Reviewed by SunLight Poems and Arts
on
July 14, 2020
Rating:
Good one
ReplyDeletePdh kr bhott acha lgaa 👏👏wahhhhh
ReplyDeleteEnd
ReplyDeleteNic
ReplyDelete🙂🙂
ReplyDeleteNiceeeeeeeeeeeee
ReplyDeleteAaj kal ki zindagi ki iss poem m buut hi aschi trh smeta gya,zindagi ek Safar h bs chlte jao chalte jao
ReplyDeleteNice lines 👍🏻😊
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteThank you everyone for your beautiful comments and support.
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