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गुम होती इंसानियत (Gum hoti Insaniyat)|Dear Diary

किसने सोचा किसने बनाई
न जाने यह जात कहाँ से आई ?
बात - बात  पर औकात दिखाने की बात होती है
किस जात से हो ? इस प्रश्न से हमेशा शुरुआत होती है
इंसानियत नहीं, यहाँ जात से रिश्ते जुड़ते है
पढ़े लिखो के समाज में आज भी, शब्दों के तीर निकलते है |



 


















समझ नहीं आता की विचारो में मतभेद कहाँ से आया ?
जब बनाया है ऊपर वाले ने इंसान, तो जात के नाम पे भेद कहाँ से आया ?

 
हम बड़े वो छोटे यह किसने सिखाया ?
मैंने तो किताबो में कभी ऐसी शिक्षा को न पाया |


आज भी किताबो का पहला पन्ना समानता और एकता का पाठ पढ़ाता है |
फिर जात के नाम पे क्यों ? आज भी समाज बटता चला जाता है | 












  




जिस शिक्षक से शिक्षा पाई उनकी जात न पूछी |
जिस दूकान से कपडे लिए उनकी औकात न पूछी |
फिर आज यह प्रश्न कैसे आया ?
जिसने बस हमेशा रिश्ते और इंसानो को मिटाया |

आखिर इस जात को किसने बनाया ?

 

















जब होटल और रेस्टोरेंट गए यह भेद भूल गए |
खाना बनाने वाला किस जात का है ? तब क्यों न यह प्रश्न सामने आया
जब रिश्ते जोड़ने की बात आई फिर क्यों इस जात ने महत्व पाया ?

आखिर इस जात को किसने बनाया ?



 

















25 वर्षो के दौर में अनगिनत लोगो से मुलाकात हुई
तुम किस जात से हो ? पहले कभी ऐसे शुरुआत न हुई

अचानक यह प्रश्न कहाँ से आया ?
आखिर इस जात को किसने बनाया ?

इंसानियत का महत्व कम और जात को किसने बढ़ाया
जब खुदा ने भेद नहीं किया तो आखिर यह भेद कहाँ से आया ?





















आखिर इस जात को किसने बनाया ?

सोचियेगा ज़रा इस बात पर
आखिर इंसानियत को भूलकर किसने जात का महत्व बढ़ाया  ?


आखिर इस जात को किसने बनाया ?


By: J.K





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गुम होती इंसानियत (Gum hoti Insaniyat)|Dear Diary गुम होती इंसानियत (Gum hoti Insaniyat)|Dear Diary Reviewed by SunLight Poems and Arts on October 21, 2019 Rating: 5

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